Barabanki News: देश में गरीबों और बेसहारा लोगों को पक्की छत देने के लिए सरकार कई योजनाएँ चला रही है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इनका लाभ सभी ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुँच पा रहा। ऐसा ही एक चौंकाने वाला मामला उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के देवा थाना क्षेत्र के ग्राम वीकर से सामने आया है, जहाँ एक बुजुर्ग महिला बीते 14 वर्षों से अपनी बेटी के घर रहने को मजबूर है।
बता दे कि पीड़ित महिला के अनुसार, वर्षों पहले उसका मकान पूरी तरह गिर गया था। घर के साथ-साथ उसके सभी महत्वपूर्ण दस्तावेज़ भी नष्ट हो गए। इसके बाद से वह किसी भी सरकारी योजना का लाभ लेने में असमर्थ हो गई। न तो उसके पास अपनी पहचान साबित करने के कागज़ हैं और न ही सरकारी रिकॉर्ड में उसका नाम दर्ज हो पाया।
बुजुर्ग महिला ने बताया कि उसने कई बार ग्राम प्रधान, ब्लॉक कार्यालय और संबंधित अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन हर बार उसे सिर्फ़ आश्वासन मिला। प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी महत्वपूर्ण योजना, जिसका उद्देश्य बेघर लोगों को छत देना है, वह आज भी उससे वंचित है।
स्थिति और भी गंभीर तब हो जाती है जब पता चलता है कि महिला के पास अपनी जमीन होने के बावजूद उसे किसान सम्मान निधि का लाभ भी नहीं मिल रहा। दस्तावेज़ न होने के कारण उसे किसान के रूप में मान्यता नहीं दी जा रही, जिससे वह आर्थिक सहायता से भी वंचित है।
आज महिला की सबसे बड़ी चिंता उसका भविष्य है। वह कहती है कि अगर किसी कारणवश बेटी के घर से उसे अलग होना पड़ा, तो उसके पास जाने के लिए कोई ठिकाना नहीं होगा। न घर, न नियमित आय और न ही सरकारी मदद—एक बुजुर्ग महिला का जीवन पूरी तरह असुरक्षा में है। यह मामला प्रशासनिक व्यवस्था और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन पर गंभीर सवाल खड़े करता है। जब वास्तविक रूप से पात्र व्यक्ति को वर्षों तक लाभ नहीं मिलता, तो योजनाओं की सफलता पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
अब ज़रूरत है कि प्रशासन इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करे, महिला के दस्तावेज़ों की पुनःजांच कराए और उसे जल्द से जल्द आवास उपलब्ध कराए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी बुजुर्ग या बेसहारा व्यक्ति वर्षों तक योजनाओं के दरवाजे पर भटकता न रहे। आखिरकार, सरकारी योजनाओं का उद्देश्य तभी पूरा होगा, जब “आवास” सच में हर जरूरतमंद के सिर पर छत बनकर आए—न कि सिर्फ कागज़ों में दर्ज एक वादा बनकर रह जाए।













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