नई दिल्ली। आस्था, अनुशासन और अटूट श्रद्धा का प्रतीक छठ महापर्व इस वर्ष 25 अक्टूबर से नहाय-खाय के साथ प्रारंभ हो चुका है। यह चार दिवसीय पवित्र पर्व 28 अक्टूबर तक चलेगा। दीपावली के छह दिन बाद मनाया जाने वाला यह महापर्व न सिर्फ़ सूर्य उपासना का सबसे बड़ा उत्सव है, बल्कि मातृत्व, तपस्या और आत्मसंयम की दिव्य साधना भी है।
नहाय-खाय से लेकर उषा अर्घ्य तक — शुद्धता की यात्रा
छठ पर्व की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है। इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं पवित्र नदी या तालाब में स्नान कर शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं और अपने संकल्प की शुरुआत करती हैं। इसके बाद ‘खरना’ के दिन बिना नमक का प्रसाद बनाकर व्रती उपवास तोड़ती हैं।
अगले दिन संध्या अर्घ्य के समय महिलाएं अस्ताचलगामी सूर्य को दूध, गंगाजल और फल-सामग्री से अर्घ्य देती हैं। चौथे दिन उषा अर्घ्य यानी उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत पूरा किया जाता है। इस दौरान व्रती महिलाएं पूरे 36 घंटे का निर्जला उपवास रखती हैं — न जल ग्रहण करती हैं, न अन्न। यह तपस्या ही छठ को अन्य पर्वों से विशिष्ट बनाती है।
छठ पूजा: केवल अनुष्ठान नहीं, अनुशासन का प्रतीक
छठ केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह जीवनशैली में पवित्रता और आत्मनियंत्रण का संदेश देती है। इस पर्व में हर क्रिया — चाहे स्नान हो, भोजन बनाना हो या अर्घ्य देना — पूर्ण शुद्धता के साथ की जाती है। माना जाता है कि छठी मैया और सूर्यदेव को समर्पित यह पर्व परिवार की समृद्धि, संतान की दीर्घायु और सुख-शांति प्रदान करता है।
छठ पूजा के लिए आवश्यक सामग्री
जो लोग पहली बार छठ व्रत करने जा रहे हैं, उनके लिए सामग्री की सूची बेहद अहम है —
- व्रती के लिए नए वस्त्र (साड़ी या सूती कपड़े)
- दो बांस की डावरी (टोकरियां) प्रसाद रखने हेतु
- अर्घ्य के लिए बांस या पीतल का बर्तन, लोटा, गिलास और थाली
- गंगाजल और दूध स्नान व अर्घ्य हेतु
- नारियल, पांच गन्ने के तने, केले का पत्ता, केले, सेब, सिंघाड़ा, शकरकंद, सुथनी, अदरक का पौधा
- ठेकवा बनाने के लिए गेहूं का आटा, गुड़ और घी
- दीपक, अगरबत्ती, कुमकुम, सिंदूर, हल्दी की गांठें, सुपारी और शहद
- पूजा स्थल सजाने के लिए केले के पत्ते और दीयों की मृदु ज्योति
आस्था का उत्सव जो जोड़ता है परिवार और समाज
छठ पर्व में न केवल महिलाएं, बल्कि पूरा परिवार और मोहल्ला साथ आता है। घाटों की सजावट, सूर्यदेव के जयकारे, और भक्तों की श्रद्धा से वातावरण भक्ति और सकारात्मकता से भर जाता है।इस पर्व का हर क्षण यह संदेश देता है कि जब मन, वचन और कर्म की पवित्रता एक साथ होती है, तभी सच्चा ‘छठ’ पूरा होता है।
छठ — आत्मसंयम और समर्पण का उत्सव
अगर आप पहली बार छठ पूजा कर रही हैं, तो याद रखें — यह सिर्फ़ व्रत नहीं, बल्कि आत्म-शुद्धि और श्रद्धा की पराकाष्ठा है। नियमों का पालन करें, मन को शांत रखें और सूर्यदेव से प्रार्थना करें। आस्था से किया गया हर अर्घ्य केवल जल नहीं, बल्कि आपके समर्पण और प्रेम की सच्ची अभिव्यक्ति होता है।
