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 Aravalli Hills:अरावली की रक्षा के लिए संघर्ष तेज़: अखिलेश यादव ने दी भाजपा को चुनौती,कही ये बड़ी बात

"अरावली बचाओ आंदोलन" या अंग्रेज़ी में: "Save Aravalli Movement"

 Aravalli Hills: देश की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक, अरावली की पहाड़ियों की नई ऊंचाई-आधारित परिभाषा को लेकर सियासी और सामाजिक बहस तेज़ हो गई है। अरावली को बचाने के लिए अब समाज के हर वर्ग से आवाज़ें उठ रही हैं, और कई जगह प्रदर्शन और विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। पर्यावरण कार्यकर्ताओं के विरोध के बीच अब विपक्ष भी इस मुद्दे पर सरकार पर सवाल उठा रहा है। यह मामला केवल खनन या निर्माण का नहीं, बल्कि पर्यावरण, प्रदूषण नियंत्रण और आम नागरिकों के जीवन से जुड़ा हुआ है।

अरावली का महत्व

अरावली की—दो अरब साल पुरानी वो पहाड़ियां,जो बिना कुछ कहे,हमें आज तक बचाती आई हैं।अरावली सिर्फ पत्थरों की ढेर नहीं है।] यह दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है करीब 2 अरब साल पुरानी। दिल्ली से गुजरात तक फैली करीब 692 किलोमीटर लंबी दीवार जो थार रेगिस्तान की रेत, लू और धूल को हमारे शहरों तक आने से रोकती है। वैज्ञानिक साफ कहते हैं अगर अरावली न होती,तो आज दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी यूपी रेगिस्तान की चपेट में होते। 20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की नई परिभाषा को मंज़ूरी दी। अब अरावली वही मानी जाएगी जो 100 मीटर या उससे ऊँची पहाड़ी हो। और यहीं से विवाद शुरू हुआ। सरकारी आंकड़े बताते हैं—राजस्थान में मौजूद अरावली कीकरीब 90 प्रतिशत पहाड़ियां 100 मीटर की शर्त पूरी नहीं करतीं।मतलब?90 प्रतिशत अरावलीअब संरक्षण कानूनों से बाहर।

खतरे और चेतावनी

पर्यावरणविदों का डर साफ है अगर ये पहाड़ियां कानूनी तौर पर अरावली नहीं रहीं,तो यहाँ खनन,रियल एस्टेट,और निर्माण गतिविधियाँ तेज़ हो सकती हैं।इसका नतीजा ये होगा की भूजल नीचे जाएगा,प्रदूषण बढ़ेगा, जंगल खत्म होंगे, तापमान और बढ़ेगा, दिल्ली-NCR के लिए ये पहाड़फेफड़ों का काम करते हैं।अगर फेफड़े ही कमजोर हो जाएं, तो शरीर कैसे बचेगा?सरकार का तर्क है—पहले भी 100 मीटर का मानक माना गया था।और ये कहना गलत है कि खनन से ही रेगिस्तान बढ़ेगा। सरकार ने ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट शुरू किया है अरावली के चार राज्यों में 5 किलोमीटर का ग्रीन बफर है साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है-नई मैनेजमेंट प्लान बनेगी, जहाँ तय होगाकहाँ खनन बिल्कुल नहीं होगा, और कहाँ सीमित होगा। अब मामला अदालत से निकलकर सड़क और सोशल मीडिया तक आ चुका है। #SaveAravalli देशभर में ट्रेंड कर रहा है।पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहते हैं “अरावली कोई पहाड़ नहीं, ये प्रकृति की बनाई ग्रीन वॉल है।एक ईंट भी हटी, तो पूरी दीवार गिरेगी।सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दिल्लीवासियों को अरावली पहाड़ियों को बचाने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि अरावली को बचाना कोई विकल्प नहीं बल्कि संकल्प होना चाहिए।अरावली को बचाना मतलब ख़ुद को बचाना है। अगर अरावली का विनाश नहीं रोका गया तो भाजपा की अवैध खनन को वैध बनाने की साज़िश और ज़मीन की बेइंतहा भूख देश की राजधानी को दुनिया की ‘प्रदूषण राजधानी’ बना देगी और लोग दिल्ली छोड़ने को बाध्य हो जाएंगे। इसीलिए आइए हम सब मिलकर अरावली बचाएं और भाजपा की गंदी राजनीति को जनता और जनमत की ताक़त से हराएं! उनका ये संदेश सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है। दिलचस्प बात ये है—भाजपा के अंदर से भी आवाज़ उठी है।

नागरिक आवाज़ और आंदोलन

पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़ ने सरकार से रिव्यू पिटिशन की मांग की है। अब सवाल सीधा है क्या विकास का मतलब पहाड़ काटना है?क्या कुछ साल का मुनाफा हमारे बच्चों के पानी,हवा और ज़मीन से बड़ा है?सोचिए—अरावली सिर्फ़ पुराने पत्थरों की एक श्रृंखला है, या ये हमारी जीवनरेखा है?क्या आपने कभी सोचा है कि अगर अरावली नहीं रही, तो मारवाड़, मेवाड़ और दिल्ली-एनसीआर का भविष्य कैसा होगा?आज हम देखते हैं कि खनन, रियल एस्टेट, अवैध अतिक्रमण, कानूनों की कमजोरियां और प्रदूषण—ये सब विकास के नाम पर हो रहे हैं, लेकिन इसका असली असर हमारे और हमारी आने वाली पीढ़ियों के जीवन पर पड़ रहा है।पुरानी कहावत है “ऊँट ना छोड़े आकड़ों, ने बकरी ना छोड़े काकड़ों”आज ये अरावली में कड़वी हकीकत बन गई है।जब जंगल काटे गए, पेड़ उखाड़े गए और पहाड़ बंजर हुए,तो पिछले पचास साल में मारवाड़ अकाल और बाढ़ जैसी आपदाओं का शिकार रहा।क्या यह सिर्फ संयोग है?या प्रकृति हमें सीधे चेतावनी दे रही है अगर हम जंगल काटेंगे, तो जलवायु संतुलन टूट जाएगा।पेड़ बारिश को रोकते हैं, मिट्टी को बांधते हैं और भूजल को भरते हैं।हम जानते हैं ये, फिर भी अगर हम इन्हें जानबूझकर खत्म करेंगे,तो हमारे शहरों, गांवों और खेतों का भविष्य खतरे में पड़ेगा।अरावली बचाओ आंदोलन इसी सवाल से पैदा हुआ है अगर नागरिक नहीं बोलेंगे, तो कौन बोलेगा?यह आंदोलन किसी राजनीतिक दल का नहीं है।यह सिर्फ और सिर्फ हम आम लोगों की आवाज़ है।यह हमें पूछने को मजबूर करता है, क्या कुछ साल का खनन का फायदा हमारे पानी, हमारी हवा और हमारी आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा से बड़ा है?

जब कानून कमजोर किए जाते हैं,तो क्या यह हमारे संवैधानिक अधिकारों और भविष्य के साथ अन्याय नहीं है?अब सवाल सिर्फ यह नहीं है कि अरावली बचेगी या नहीं।सवाल यह है कि क्या हम इसे बचाने के लिए खड़े होंगे,या इतिहास में मूक दर्शक बनकर रहेंगे?आज अगर हम आवाज़ उठाएंगे,तो आने वाली पीढ़ियों को पानी, हरियाली और सुरक्षित जलवायु देंगे।और अगर नहीं उठाएंगे,तो उन्हें सिर्फ रिपोर्ट, चेतावनी और पछतावे ही मिलेंगे।अरावली बचाओ आंदोलन हमें यही सोचने और सवाल पूछने के लिए प्रेरित करता है।और शायद, अब समय आ गया है कि हम सवाल पूछने के साथ-साथ जवाब देने की ज़िम्मेदारी भी उठाएँ।

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